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ऊतक

कक्षा - 9, अध्याय - 6, विषय - विज्ञान

प्रश्न 1. ऊतक क्या है?

उत्तर: ऊतक कोशिकाओं का वह समूह है जो बनावट तथा संरचना में समान होता है तथा एक ही तरह के कार्य करता है।

प्रश्न 2. बहुकोशिक जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है?

उत्तर: मनुष्यों में, पेशीय ऊतक फैलते और सिकुड़ते हैं, जिससे गति होती है, तंत्रिका ऊतक संदेशों के वाहक होते हैं; रक्त जो एक संयोजी ऊतक है, ऑक्सीजन, भोजन, हाॅर्मोन और अपशिष्ट पदार्थों का वाहक होता है। पौधों में जाइलम और फ्लोएम भोजन और जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं।

प्रश्न 3. प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक कहांँ पाया जाता है?

उत्तर: प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक पौधों की जड़ों तथा तनों के वृद्धि वाले शीर्ष पर पाया जाता है।

प्रश्न 4. सरल ऊतकों के कितने प्रकार हैं?

उत्तर:  सरल ऊतक तीन प्रकार के होते हैं- 

(i) पैरेन्काइमा 

(ii) कॉलेन्काइमा 

(iii) स्क्लेरेन्काइमा

प्रश्न 5. नारियल का रेशा किस ऊतक का बना होता है?

उत्तर: नारियल का रेशा स्क्लेरेन्काइमा ऊतक से बना होता है।

प्रश्न 6. पैरेन्काइमा ऊतक किस क्षेत्र में स्थित होते हैं?

उत्तर: यह वल्कुट, मज्जा, पर्ण मध्योतक आदि में पाया जाता है।

प्रश्न 7. भोजन संचय का कार्य प्रमुखतः कौन-सा ऊतक करता है?

उत्तर: भोजन संचय का कार्य प्रमुखतः मृदूतक करता है।

प्रश्न 8. पौधों में एपीडर्मिस की क्या भूमिका है?

उत्तर: (i) यह पौधों के शरीर का बाह्य आवरण बनाता है। 

(ii) यह पौधों के शरीर के आंतरिक ऊतकों की सुरक्षा करता है। 

(iii) यह सुरक्षात्मक ऊतक है। इसमें अंतराकोशिकीय स्थान नहीं होते हैं।

प्रश्न 9. रंध्र के क्या कार्य हैं?

उत्तर: रंध्र के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं -

(i) वाष्पोत्सर्जन 

(ii) गैसों का आदान-प्रदान

(iii) वाष्पोत्सर्जन के दौरान जल वाष्प भी रंध्रों द्वारा ही बाहर निकलती है। 

(iv) प्रकाश-संश्लेषण एवं श्वसन के दौरान वातावरण से वात विनिमय रंध्रों द्वारा ही होता है।

 

प्रश्न 10. प्रकाश-संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है?

उत्तर: कार्बन डाइऑक्साइड।

प्रश्न 11. छाल (कार्य) किस प्रकार सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करता है?

उत्तर: यह मोटी भित्ति वाली मृत कोशिकाओं का बना होता है जिनमें सुबेरिन जम जाती है। काॅर्क को फेलम भी कहते हैं। यह जलसह होता है तथा सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रश्न 12. किन्ही दो जटिल ऊतकों के नाम लिखिए।

उत्तर: जाइलम तथा फ्लोएम दो जटिल ऊतक हैं।

प्रश्न 13. पौधों में सरल ऊतक, जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं?

उत्तर: सरल ऊतक व जटिल ऊतक में भिन्नता

सरल ऊतक: (i) ये एक ही प्रकार की कोशिकाओं के बने होते हैं।

(ii) इनके उदाहरण निम्न है- पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा तथा स्क्लेरेन्काइमा। 

जटिल ऊतक: (i) ये एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं के बने होते हैं। 

(ii) इनके उदाहरण निम्न है- जाइलम तथा फ्लोएम।

प्रश्न 14. संयोजी ऊतकों में पाए जाने वाले दो प्रकार के तन्तुओं के नाम बताइए।

उत्तर: श्वेत कोलेजन तन्तु तथा पीत इलास्टिन तन्तु। 

प्रश्न 15. अस्थि किस प्रोटीन के कारण कठोर होती है?

उत्तर: अस्थि, ओसीन नामक प्रोटीन की बनी होती है, किंतु इसकी कठोरता कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवणों के जमा होने से होती है।

प्रश्न 16. कण्डरा किसको परस्पर जोड़ती है?कण्डरा किसको परस्पर जोड़ती है?

उत्तर: कण्डराएँ पेशियों को आपस में तथा अस्थियों से जोड़ती हैं।

प्रश्न 17. एरिओलर ऊतक के क्या कार्य हैं?

उत्तर: एरिओलर ऊतक के कार्य निम्नलिखित हैं-
 (i) यह अंगों के बीच के स्थान को भरता है। 

(ii) यह आंतरिक अंगों को सहारा देता है। 

(iii) ऊतकों की मरम्मत में सहायक है।

प्रश्न 18. मनुष्य के पैरों में कौन सी मांसपेशियाँ पाई जाती हैं?

उत्तर: मनुष्य के पैरों में ऐच्छिक या रेखित मांसपेशियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 19. मूत्राशय में पाई जाने वाली पेशी का नाम लिखिए।

उत्तर: मूत्राशय में अरेखित या अनैच्छिक पेशी पाई जाती है।

प्रश्न 20. कौन सी पेशियांँ बिना थके तथा निरन्तर जीवन पर्यंत काम करती रहती हैं?

उत्तर: हृद पेशियांँ जो हृदय में होती हैं, जीवन पर्यंत तथा निरंतर बिना थके कार्य करती रहती हैं।

प्रश्न 21. उस ऊतक का नाम बताएं जो हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदाई है।

उत्तर: पेशीय ऊतक

प्रश्न 22. कार्डियक (हृदयक) पेशी का विशेष कार्य क्या है?

उत्तर: यह हृदय का मायोकार्डियम बनाता है। इसका मुख्य कार्य जीवन भर लयबद्ध संकुचन तथा विमोचन करना।

प्रश्न 23. न्यूरॉन देखने में कैसा लगता है?

उत्तर: न्यूरॉन में कोशिकाएंँ, केंद्रक तथा कोशिकाद्रव्य होते हैं। इससे लंबे, पतले बालों जैसी शाखाएंँ निकली होती हैं। प्रायः प्रत्येक न्यूरॉन में एक लंबा प्रवर्ध होता है, जिसको एक्साॅन कहते हैं तथा बहुत सारे छोटी शाखा वाले प्रवर्ध होते हैं जिनको डेंड्राइट्स कहते हैं

प्रश्न 24. निम्नलिखित के नाम लिखिए-

(i) ऊतक जो मुंह के भीतरी अस्तर का निर्माण करता है। 

(ii) ऊतक जो मनुष्य में पेशियों को अस्थि से जोड़ता है। 

(iii) ऊतक जो पौधों में भोजन का संवहन करता है। 

(iv) ऊतक जो हमारे शरीर में वसा का संचय करता है।

(v) तरल आधात्री सहित संयोजी ऊतक। 

(vi) मस्तिष्क में स्थित ऊतक।

उत्तर: (i) शल्की एपिथीलियम 

(ii) कण्डरा 

(iii) फ्लोएम 

(iv) वसामय ऊतक

(v) रुधिर 

(vi) तंत्रिका ऊतक।

प्रश्न 25. निम्नलिखित में ऊतक के प्रकार की पहचान करें। 

(i) त्वचा 

(ii) पौधे का वल्क 

(iii) अस्थि

(iv) वृक्कीय नलिका अस्तर

(v) संवहन बंडल।

उत्तर: (i) त्वचा: स्तरित शल्की एपिथीलियमी ऊतक। 

(ii) पौधे का वल्क: सरल स्थाई पैरेन्काइमा ऊतक। 

(iii) अस्थि: संयोजी कंकाल ऊतक। 

(iv) वृक्कीय नलिका अस्तर: घनाकार एपिथीलियम। 

(v) संवहन बंडल: जाइलम एवं फ्लोएम (स्थाई जटिल ऊतक) ।

प्रश्न 26.  संवहन ऊतकों के बारे में आप क्या जानते हैं? यह किस प्रकार के होते हैं? प्रत्येक प्रकार के संवहन ऊतक का सचित्र वर्णन कीजिए। 

या

कितने प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं? उनके नाम बताइए।

या

पौधों में जटिल ऊतक क्या है? इसका संक्षेप में सचित्र वर्णन कीजिए।

फ्लोएम के संघटक कौन कौन से हैं? 

उत्तर:  संवहन ऊतक (जटिल ऊतक) 

संवहन ऊतक एक प्रकार के जटिल ऊतक होते हैं क्योंकि इन ऊतकों को बनाने में एक से अधिक प्रकार की कोशिकाएं भाग लेते हैं, जो सब मिलकर एक ही कार्य करती हैं। पौधों में संवहन ऊतक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

(1) जाइलम उत्तक 

(2) फ्लोएम उत्तक

 

(1) जाइलम या दारू उत्तक: यह जल संवाहक ऊतक कहलाता है। इसमें चार प्रकार की विशेष संरचनाएँ पाई जाती हैं-

 

(i) वाहिनिकाएँ: ये निर्जीव लंबी तथा नलिकाकार होती हैं। ये दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। लिग्निन के जमा होने के कारण इन कोशिकाओं की भित्ति मोटी हो जाती है।

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(ii) वाहिकाएँ: यह बेलनाकार नलिकायें हैं जो एक के ऊपर एक लगी रहती हैं। अनुप्रस्थ भित्तियों के नष्ट होने से ये जड़ से लेकर पत्तियों तक लंबी नलिकाओं का रूप ले लेती हैं। इनकी कोशिका भित्ति पर लिग्निन के जमा हो जाने से कई प्रकार का स्थूलन हो जाता है जैसे वलयाकार, सर्पिल, सोपानवत्, जालिकावत् तथा गर्ती। 

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(iii) जाइलम मृदूतक: यह सजीव कोशिकाएं हैं जिनकी भित्ति लिग्निन के जमा होने के कारण मोटी हो जाती हैं।। 

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(iv) जाइलम तन्तु:  ये निर्जीव, दृढो़तक कोशिकाओं के बने होते हैं। ये पौधों को यांत्रिक शक्ति प्रदान करते हैं। 

जाइलम के कार्य

(i) मूलों द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों के घोल को पौधों के वायव भागों (पत्तियों) तक जाइलम द्वारा पहुंचाया जाता है। इस कारण इस जटिल ऊतक को जल संवाहक ऊतक कहते हैं।

(ii) इनमें उपस्थित कोशिकाओं की भर्तियां मोटी व दृढ़ होने के कारण यह ऊतक पौधे के भागों को यांत्रिक शक्ति देता है। 

(2) फ्लोएम या अधोवाहीपत्तियों में बनने वाले खाद्य पदार्थों अथवा पौधे के विभिन्न संचय केंद्रों से खाद्य पदार्थों को अन्य स्थानों पर पहुंचाने का कार्य पौधों में अधोवाही या फ्लोएम ऊतक करता है। यह एक जटिल ऊतक है और इसमें निम्नलिखित चार प्रकार की कोशिकाएं या अवयव पाए जा सकते हैं।

(i) चालनी नलिकाएं: ये फ्लोएम ऊतक की विशेष तथा नलिकाकार संरचनाएं हैं। ये अनेक सजीव व लंबी कोशिकाओं के सिरे से सिरे जुड़े होने से बनती हैं और इनके अंदर काफी स्थान में जीवद्रव्य होता है। कोशिकाओं की अनुप्रस्थ भित्तियाँ तिरछी तथा छलनी की तरह सरन्ध्र होती हैं। इन भित्तियों को चालनी पट्टिकाएँ कहते हैं। चालनी नलिकाओं की भित्ति सेल्यूलोज की बनी होती है तथा इस पर गर्तमय स्थूलन भी सेल्यूलोज से ही होता है।

(ii)  सहकोशिकाएंँ: प्रत्येक चालनी नलिका के साथ एक संकरी सहकोशिका लगी रहती है जो इसकी लंबाई में समांतर होती है। सहकोशिका की भित्ति पतली होती है तथा यह घने जीवद्रव्य से भरी रहती है। इसके अंदर एक बड़ा केन्द्रक होता है। सहकोशिकाएंँ चालनी नलिकाओं की क्रियाओं पर नियंत्रण करती हैं।

(iii) फ्लोएम मृदूतक: चालनी नलिकाओं के बीच बीच में साधारण मृदूतक की छोटी-छोटी कोशिकाएंँ होती हैं जो अधोवाही मृदूतक या फ्लोएम पैरेन्काइमा कहलाती हैं।

(iv) फ्लोएम रेशे: ये दृढो़तक रेशे होते हैं। यह मृत होते हैं तथा फ्लोएम को प्रमुखतः यांत्रिक शक्ति व दृढता प्रदान करते हैं। 

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​फ्लोएम के कार्य: फ्लोएम का मुख्य कार्य, पत्तियों द्वारा बनाए गए कार्बनिक खाद्य पदार्थों को पौधे के विभिन्न भागों में ऊपर से नीचे तक सभी स्थानों में पहुंचाना है।

 

प्रश्न 27. जन्तु ऊतकों का वर्गीकरण कीजिए। विभिन्न एपिथीलियमी ऊतकों का संक्षिप्त सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर: जन्तु ऊतक: जन्तु ऊतक मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं:- 

(i) उपकला या एपिथीलियमी ऊतक 

(ii) संयोजी ऊतक 

(iii) पेशीय ऊतक

(iv) तंत्रिका ऊतक

उपकला या एपिथीलियमी ऊतक

यह सदैव महीन परतों के रूप में पाए जाते हैं। ये सरलतम जन्तु ऊतक हैं। उपकला ऊतक की परतें शरीर के विभिन्न अंगों पर बाहरी तथा भीतरी रक्षक आवरण बनाती हैं। जब यह ऊतक केवल एक स्तर के रूप में होता है तो इसे सामान्य एपिथीलियम कहते हैं। जब यह कई स्तरों से बना होता है तो इससे स्तरित एपिथीलियम कहते हैं। सामान्य एपिथीलियम की कोशिकाएं आकार एवं कार्य के आधार पर विभिन्न प्रकार की होती हैं:- 

(i) शल्की उपकला: इसकी कोशिकाएं चौड़ी, चपटी, बहुभुजीय तथा परस्पर सटी होती हैं; जैसे- रुधिर वाहिनियों में, फेफड़ों की वायु कूपिकाओं में, देहगुहा के स्तरों में आदि। ये रक्षात्मक आवरण बनाती हैं।

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(ii) स्तम्भी उपकला: इसकी कोशिकाएं लम्बी तथा परस्पर सटी होती हैं; जैसे- आहारनाल की भीतरी पर्त में। ये पचे हुए खाद्य पदार्थों का अवशोषण करते हैं।

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(iii) घनाकार उपकला: इसकी कोशिकाएं घनाकार होती हैं; जैसे- जनन अंगों में, मूत्रजनन नलिकाओं आदि में।

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(iv) ग्रन्थिल उपकला: इसकी कोशिकाएंं स्तम्भाकार एवं स्रावी होती हैं: जैसे- लार ग्रंथियों में, जठर ग्रंथियों में कुछ ग्रंथियां एक कोशिकीय होती हैं; जैसे- चषक कोशिका आदि। 

(v) रोमाभि उपकला: इसकी कोशिकाओं के स्वतंत्र छोर पर रोमाभ पाए जाते हैं; जैसे- श्वासनाल, मूत्रवाहिनी आदि में। 

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(vi) तंत्रिका-संवेदी उपकला: कोशिकाओं के स्वतंत्र छोर पर संवेदी रोम होते हैं; जैसे- घ्राण अंगों की  श्ल़ेष्मिक कला, अन्तः कर्ण की उपकला, नेत्र की रेटिना आदि में। ये उद्दीपनों को ग्रहण करती हैं। 

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(vii) स्तरिता एपिथीलियम: यह कई स्तरों की बनी होती है। सामान्यतः इसके सबसे भीतरी स्तर की कोशिकाएं निरंतर विभाजित होकर नए स्तर का निर्माण करती हैं। 

कार्य: 

(i) यह शरीर के आंतरिक अंगों की सुरक्षा करता है। 

(ii) यह पोषक पदार्थों और जल के अवशोषण में सहायता करता है। 

(iii) यह हानिकारक एवं व्यर्थ पदार्थों के निष्कासन में सहायता करता है। 

(iv) यह लाभदायक पदार्थों का स्रावण करता है। 

(v) उपकला ऊतक की कोशिकाएं शरीर के आंतरिक अंगों को परजीवियों के संक्रमण, हानिकारक पदार्थों के दुष्प्रभाव तथा सूखने आदि से बचाती हैं।

प्रश्न 28. पेशियों की शरीर में क्या उपयोगिता है? पेशियांँ कितने प्रकार की होती हैं? प्रत्येक प्रकार की पेशी की संरचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए। 

या 

रेखित एवं अरेखित पेशियों का सचित्र वर्णन कीजिए। 

या 

रेखित, अरेखित तथा कार्डियक (हृदयक) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अंतर स्पष्ट करें। 

या 

तीनों प्रकार के पेशीय रेशों के चित्र बनाकर अंतर स्पष्ट करें।

या 

हृदयक पेशी के तीन लक्षणों को बताइए।

 उत्तर: पेशियों की शरीर में उपयोगिता: पेशियों की उपयोगिता इनके निम्नलिखित कार्यों से स्पष्ट होती हैं:-   

(1) गति: कंकाल पेशियां अपने सिकुड़ने के गुण के कारण चलने में सहायता करती हैं अथवा शरीर के किसी भाग को गति प्रदान करती हैं। इस कार्य में कण्डरायें एवं स्नायु सहायता करते हैं। 

(2) ताप उत्पादन: पेशी कोशिकाएं अति क्रियाशील होती हैं। शरीर के कुल ताप का मुख्य भाग इनकी क्रियाशीलता के कारण ही उत्पन्न होता है; अतः इन पेशियों के संकुचन आदि से शरीर का तापमान संतुलित बना रहता है। 

(3) संस्थिति: कुछ पेशी कोशिकाओं के आंशिक संकुचन से बैठना, खड़े रहना जैसे शरीर की अवस्थाएं बनी रहती हैं। 

पेशियों के कार्य उनकी संकुचन क्षमता व लचीलेपन पर आधारित तथा निर्धारित होते हैं। कुछ सामान्य कार्यों के उदाहरण निम्नलिखित हैं- 

(i) अनैच्छिक पेशियों के द्वारा हृदय का धड़कना, सांस लेना आदि अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य संचालित होते हैं। 

(ii) विभिन्न मांसपेशियों के द्वारा आंख किसी वस्तु को देखती हैं तथा पेशियां ही नेत्र संयोजन का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। 

(iii) ऐच्छिक पेशियों के द्वारा खेलना, दौड़ना, खाना आदि कार्यों को हम अपनी इच्छा अनुसार कर सकते हैं। 

(iv) मांसपेशियाँ शरीर को एक आकार देती हैं। शरीर का सधा हुआ तथा संतुलित रहना भी इन्हीं के कारण होता है। 

(v) थकान के बाद आराम के द्वारा मांसपेशियों में कार्य करने की नई शक्ति प्राप्त होती है। 

पेशियों के प्रकार, संरचना तथा कार्य 

पेशी ऊतक प्रायः निम्नांकित प्रकार के होते हैं:- 

(i) रेखित या  ऐच्छिक पेशियां: शरीर में अधिकांशतः पायी जाने वाली रेखित पेशीयाँ प्राणी की इच्छानुसार तंत्रिका तंत्र के नियंत्रण में कार्य करती हैं। इसीलिए इन्हें ऐच्छिक पेशियाँ कहते हैं। अपने दोनों सिरों पर अस्थियों से जुड़े रहने के कारण यह कंकालीय पेशियाँ भी कहलाती हैं। हाथ-पैरों तथा शरीर को गमन एवं गति प्रदान करने के कारण ये दैहिक पेशियाँ भी कहीं जाती हैं। 

संरचना: प्रत्येक रेखित पेशी में 2-4 सेंटीमीटर लंबे तथा बेलनाकार अनेक पेशी तंतु होते हैं, जो समानान्तर पूलों या गुच्छों में व्यवस्थित रहते हैं। पूर्ण पेशी एक संयोजी ऊतक के आवरण द्वारा बंँधी होती है। इसके भीतर प्रत्येक पेशी तन्तु एक अन्य संयोजी ऊतक की झिल्ली द्वारा ढका रहता है। इस झिल्ली में रुधिर कोशिकाएं तथा तंत्रिका तन्तु फैले रहते हैं। 

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प्रत्येक पेशी तन्तु के चारों ओर सार्कोलेमा तथा इससे चिपकी हुई तन्तुमय आधारकला का आवरण होता है। यह उद्दीपन के लिए संवेदनशील आवरण की तरह होती है। इसके भीतर पेशीद्रव्य या सार्कोप्लाज्म नामक तरल कोशिकाद्रव्य रहता है, जिसमें अनेक केन्द्रक होते हैं। इस प्रकार रेखित पेशी ऊतक बहुकेन्द्रकी होते हैं। 

सार्कोप्लाज्म में अनेक, बहुत महीन व सूत्राकार संरचनाएं, पेशी तन्तुक रहते हैं। यह समानान्तर लगे रहते हैं, इसी कारण पेशी तन्तु रेखित दिखाई देता है। प्रत्येक रेखित पेशी तन्तु छोटे-छोटे खण्डों, पेशी खण्डों में बँटा होता है। एक पेशी खण्ड की लंबाई दो 'Z' रेखाओं के मध्य होती हैं। इसमें दो प्रकार की पट्टियां, हल्के तथा गहरे रंग की होती हैं। 

हल्की पट्टी 'Z' की ओर तथा गहरी पट्टी में एकांतर क्रम में होती हैं। इस प्रकार पेशी तन्तु इन हल्की तथा गहरी पट्टियों के कारण अनुप्रस्थ रूप में भी रेखित दिखाई देता है। 

कार्य: ऐच्छिक पेशियाँ लगातार कार्य करके थक जाते हैं। इन्हें कुछ समय पश्चात विश्राम की आवश्यकता होती है। ऐच्छिक  पेशियों की गति एवं कार्य हमारी इच्छा पर निर्भर करता है तथा इनकी गति पर तंत्रिका तन्त्र आदि का नियंत्रण रहता है। इस प्रकार की पेशियाँ मुख्य रूप से हाथ-पैर, गर्दन, आँख  तथा अन्य ऐसे अंगों में होती हैं जो हमारी इच्छा के नियंत्रण में कार्य करते हैं। चलना, दौड़ना, आंँखें खोलना या बंद करना, हाथ-पैर चलाना, उठाना-गिराना, भोजन करना, उसे मुंह में चबाकर निगल जाना आदि कार्य ऐच्छिक पेशियों के द्वारा किए जाते हैं। पेशियों के इस कार्य में काफी मात्रा में ऊर्जा व्यय होती है, जो ATP से प्राप्त की जाती है।

(ii) अरेखित या अनैच्छिक पेशियाँ:

 अरेखित पेशियों में हल्की-गहरी अनुप्रस्थ धारियांँ नहीं होती हैं, अतः इन्हें अरेखित पेशियांँ कहते हैं। इसी प्रकार इनका संकुचन हमारी इच्छानुसार नहीं होता है, अतः इन्हें अनैच्छिक पेशियाँ कहते हैं। इन पेशियों का अस्थियों से भी सीधा कोई संबंध नहीं होता है। ये प्रायः खोखले आन्तरांगों की भित्तियों से संबंधित रहती हैं, अतः इन्हें आन्तरांगीय पेशियाँ भी कहते हैं। आहारनाल, श्वासनाल, पित्ताशय, शिश्न, योनि आदि में पायी जाने वाली पेशियांँ इसी प्रकार की होती हैं। 

संरचना: अरेखित पेशियांँ पतली, लंबी व तर्कूरूप तथा तन्तुमय कोशिकाओं की बनी होती हैं। इनके बीच-बीच में तन्तुमय संयोजी ऊतक स्थित होता है, जो इन्हें परस्पर सटाकर रखता है। प्रत्येक पेशी कोशिका के पेशीद्रव्य अर्थात सार्कोप्लाज्म में एक बड़ा केन्द्रक स्थित होता है। प्रत्येक कोशिका के बाहर सार्कोलेमा होती है तथा इसके भीतर की ओर चिपका हुआ तन्तुमय आधारकला का स्तर होता है। सार्कोप्लाज्म में पेशी तन्तुक समानान्तर व्यवस्था में भरे रहते हैं। अरेखित पेशियांँ प्रायः अलग-अलग रहती हैं, परंतु कुछ स्थानों पर ये संयोजी ऊतकों द्वारा बँधकर कर पट्टियाँ भी बना लेती हैं।

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कार्य: ये पेशियांँ आहारनाल, श्वासनाल, पित्ताशय, शिश्न, योनि आदि अंगों में सभी प्रकार की गतियों में सहायता करती हैं; जैसे आहारनाल में क्रमाकुंचन की प्रक्रिया जिससे भोजन नाल में आगे बढ़ता है।

 

(iii) हृदय पेशियाँ: कशेरुकियों के हृदय की मांसल भित्तियों में हृद् पेशियांँ पायी जाती हैं। हृद् पेशियांँ छोटे-छोटे, बेलनाकार तथा शाखान्वित पेशी तन्तुओं की बनी होती हैं। 

संरचना: ये रेखित पेशीयों के समान होते हैं, परंतु इनमें आकुंचन अरेखित पेशीयों की भांति अनैच्छिक होता है। इन पेशी तन्तुओं की शाखाएं एक दूसरे से सटी हुई तथा अन्तराल संधियों के कारण जुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं। उपर्युक्त व्यवस्था के कारण हृद् पेशियांँ एक जाल सदृश संरचना बनाए रखती हैं। इनके तन्तुओं के सिरे परस्पर जुड़कर बहुकोशिकीय लम्बे-लम्बे तन्तु बनाते हैं। ऐसा प्रत्येक जोड़, दो पास के तन्तुओं की 'Z ' रेखा पर होता है तथा अति महीन उंगली सदृश प्रवर्धों द्वारा गुंडे एवं जुड़े रहते हैं। 

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कार्य: ये पेशियांँ केवल हृदय की भित्तियों में पायी जाती हैं तथा आजीवन क्रमिक रूप में, सिकुड़ती व शिथिल होती रहती हैं। इसी से हृदय धड़कता है और रुधिर के परिसंचरण में एक पंप के समान यंत्र का कार्य करता है।

 

प्रश्न 29. तंत्रिका ऊतक की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।

या

न्यूरॉन का एक चिन्हित चित्र बनाएं। 

उत्तर: तंत्रिका ऊतक: जन्तु के शरीर में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं पर नियंत्रण, शरीर के बाहर से आने वाले उद्दीपनों की जानकारी देना, उत्तेजनशीलता इत्यादि मुख्य कार्यों के साथ ही शरीर के समस्त अंगों तथा उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना तंत्रिका ऊतक का ही कार्य है। इसी ऊतक से जन्तु शरीर में तंत्रिका तन्त्र बना होता है।

 मनुष्य तथा स्तनियों सहित सभी कशेरूकियों में तंत्रिका तंत्र विशेष प्रकार के ऊतक, तंत्रिका ऊतक द्वारा निर्मित होता है। इस ऊतक में अत्यंत विशिष्ट कोशिकाएं होती हैं। 

तंत्रिका ऊतक में तंत्रिका कोशिकाएं प्रायः तंत्रिका तन्तुओं में विकसित होती हैं। 

तन्त्रिका कोशिका की संरचना: 

एक तन्त्रिका कोशिका के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-

(i) कोशिका काय

(ii) वृक्षिकाएँ 

(iii) तंत्रिकाक्ष। 

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(i) कोशिका काय: यह तंत्रिका कोशिका का मुख्य भाग है। इसमें एक केन्द्रक व चारों ओर कोशिकाद्रव्य में प्रोटीन युक्त निसिल के कण होते हैं

(ii) वृक्षिकाएँ या डेण्ड्राॅन: ये कोशिका काय से निकले प्रवर्ध हैं, जिनसे अनेक शाखाएं, द्रुमाश्म  या वृक्षिकान्त निकलते हैं। 

(iii) तन्त्रिकाक्ष या एक्सॉन: कोशिका काय से न्यूरिलेमा में बंद लंबा, मोटा तथा बेलनाकार प्रवर्ध निकलता है। यह किसी ग्रंथि, पेशी या ज्ञानेन्द्रिय से जुड़ा रहता है। एक्साॅन तथा न्यूरीलेमा के बीच में एक वसीय पदार्थ होता है। यह रैन्वियर की नोड पर टूटा हुआ होता है। इस संपूर्ण आवरण को मज्जा आच्छद कहते हैं। एक्साॅन के मध्य से पाश्र्व तन्तु वह अंतिम सिरे से छोटी-छोटी घुण्डी रूपी शाखाएं सिनैप्टिक घुण्डियाँ निकलती हैं, जो दूसरी तन्त्रिका कोशिका के वृक्षिकान्त से मिलकर सिनैप्स बनाती हैं। इन्हीं स्थानों से संवेदनाएंँ एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक पहुंचती  हैं।

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